Karva Chauth Ki Kahani: संपूर्ण कथा-कहानी चौथ व्रत की

Karva Chauth Ki Kahani: करवा चौथ व्रत की कथा-कहानी:-

आइए विस्तार से पढ़िए करवा चौथ व्रत की रोचक कथा-कहानी:- बहुत समय पहले की यह बात है, एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके उसके कुल आठ बच्चे थे। उनमें सात लड़के और एक लड़की थी। साहूकार की लड़की का नाम विरावती था। 

सभी सातों भाई अपनी बहन विरावती से बहुत प्यार करते थे। इतना प्यार करते थे कि जब तक उनकी बहन खाना ना खा ले तब तक वह नहीं खाते थे। बहन को खाना खिलाकर ही सातों भाई खाना खाते थे। एक बार की बात है, उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।

शाम ढलने के बाद जब करवा के सभी भाई अपने काम धंधे से घर लौटे तो अपनी बहन को देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए। जब शाम को खाना खाने के लिए सभी भाई एक साथ बैठे, तो अपनी बहन को व्याकुल देख उसका कारण पूछा। विरावती ने कोई जवाब नहीं दिया इस पर सभी भाइयों ने अपनी बहन से खाना खाने का आग्रह किया।

लेकिन बहन ने यह बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जला व्रत है और वह खाना चंद्रमा को देखने के बाद उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूंकि अभी तक चंद्रमा नहीं निकला है, इसलिए वह अभी तक भूखे प्यासी है बहन ने अपनी व्याकुलता का कारण बताया।

भाइयों में जो सबसे छोटा था उसे अपनी बहन की यह हालत देखी नहीं गई और उसने दूर एक पीपल के पेड़ पर दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख दिया। दूर से देखने पर वह चतुर्थी का चांद की तरह दिखाई देने लगा।

इसके बाद वह भाई अपनी बहन को जाकर बताता है कि चलो देखो चांद निकल आया है, अब तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन ग्रहण कर सकती हो। बहन खुशी के मारे भाग कर बाहर जाती है और चांद को देखकर उसे उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है।

फिर जैसे ही वह खाने का पहला टुकड़ा अपने मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। फिर दूसरा टुकड़ा डालते ही उसमें बाल निकल आता है और फिर जैसे ही तीसरा टुकड़ा वह अपने मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसी समय उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह एकदम से बौखला जाती है।

फिर जब उसकी भाभी उसे सारी सच्चाई से अवगत कराती है कि आखिर उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से तोड़ा गया इसी वजह से देवता उससे नाराज हो गए हैं और उसके साथ उन्होंने ऐसा किया है।

पूरी सच्चाई को जानने के बाद विरावती यह निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार (अंत्येष्टि) नहीं होने देगी और हर हाल में अपने सतीत्व से अपने पति को पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। फिर वह पूरे एक वर्ष तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है और उसकी देखभाल करती है। 

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इस दौरान शव के ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती रहती है। पूरे एक साल बीतने के बाद फिर से करवा चौथ का दिन आता है और उसकी सभी सातों भाभियां पूर्ण विधि विधान से करवा चौथ का व्रत रखती हैं। 

फिर जब बारी-बारी भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं, तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा कहने आग्रह करती है, लेकिन उसकी हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने के लिए कह चली जाती है।

इसी तरह जब छठवें नंबर की भाभी आती है तो विरावती उससे भी यही बात को दोहराती है। वह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे वाले भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था, अतः उसी की पत्नी में वो शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को पुनर्जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक मत छोड़ना जब तक की वह वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे। ऐसा कह कर वह चली जाती है।

फिर जब सबसे अंत में उसकी छोटी भाभी आती है तो करवा उनसे अपने पति जीवित कर उसे सुहागिन बनाने का आग्रह करती है, लेकिन उसकी छोटी भाभी भी टालमटोली करने लगती है। ऐसा देख विरावती उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए अनुरोध करने लगती है। उसकी भाभी उससे छुटने के लिए नोचती, खसोटती है, लेकिन फिर भी विरावती उसे नहीं छोड़ती है।

अंत में उसकी तपस्या को देखकर उसकी भाभी पसीज जाती है और फिर अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से निकलने वाले अमृत को उसके पति के मुंह में डाल देती है। अमृत डालते ही विरावती का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहते हुए उठ बैठता है। इस प्रकार ईश्वर की कृपा और उसकी छोटी भाभी के माध्यम से विरावती को उसका सुहाग वापस मिल जाता है।

इसी प्रकार हे श्री गणेश, हे मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही आपसे सभी सुहागिनों को सुहागन रहने का वरदान मिले। जय हो, जय हो, जय हो श्री गणेश की।

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